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% 544.s isongs output
\stitle{do diivaane shahar me.n, raat me.n aur dopahar me.n}% 
\film{Gharonda}%
\year{1977}%
\starring{Amol Palekar, Zarina Wahab}%
\singer{Bhupinder, Runa Laila}%
\music{Jaidev}%
\lyrics{Gulzar}%
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% Contributor: Private Eye on RMIM (an36002@anon.penet.fi) 
% Transliterator: Anurag Shankar (anurag@astro.indiana.edu)
% Comments: The sadder version (ek akelaa is shahar me.n) is also in the ISB
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Dialogs first: 
भू: एक दीवाना शहर में
रू: एक दीवाना नहीं, एक दीवानी भी
भू: Hmm? hmm-hmm. [it is hard to transcribe sounds! :-)] 

then the song starts: 
भू: दो दीवाने शहर में, रात में और दोपहर में
   आब-ओ-दाना ढूँढते हैं एक आशियाना ढूँढते हैं
रू: दो दीवाने शहर में, रात में और दोपहर में
   आब-ओ-दाना ढूँढते हैं एक आशियाना ढूँढते हैं

रू: इन भूलभुल{}इया गलियों में, अपना भी कोई घर होगा
   अम्बर पे खुलेगी खिड़की या, खिड़की पे खुला अम्बर होगा
भू: इन भूलभुल{}इया गलियों में, अपना भी कोई घर होगा
   अम्बर पे खुलेगी खिड़की या, खिड़की पे खुला अम्बर होगा
   असमानी रंग की आँखों में
रू: असमानी या आसमानी?
भू: असमानी रंग की आँखों में
   बसने का बहाना ढूंढते हैं, ढूंढते हैं
रू: आबोदाना ढूंढते हैं एक आशियाना ढूंढते हैं

भू: जब तारे ज़मीं पर चलते हैं
रू: तारे, और ज़मीं पर?
भू: of course 
भू: जब तारे ज़मीं पर चलते हैं
रू: Hmmm hmmm 
भू: आकाश ज़मीं हो जाता है
रू: आ आ आ
भू: उस रात नहीं फिर घर जाता, वो चांद यहीं सो जाता है
रू: जब तारे ज़मीं पर चलते हैं
आकाश ज़मीं हो जाता है
उस रात नहीं फिर घर जाता, वो चांद यहीं सो जाता है
भू: पल भर के लिये
रू: पल भर के लिये
भू: पल भर के लिये इन आँखों में हम एक ज़माना ढूंढते हैं, ढूंढते हैं
रू: आबोदाना ढूंढते हैं एक आशियाना ढूंढते हैं
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