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% 759.s isongs output
\stitle{ilaahii kyaa ye shab-e-Gam hai umr bhar ke liye ##mukesh gazal ##}%
\film{non-Film}%
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\singer{Mukesh}%
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% Contributor:  
% Transliterator: Ravi Kant Rai (rrai@ndsun.cs.ndsu.nodak.edu)
% Credits: (tanvi@utxvms.cc.utexas.edu)
%          Preeti Ranjan Panda (ppanda@ics.uci.edu)
% Editor: Anurag Shankar (anurag@astro.indiana.edu)
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इलाही क्या ये शब-ए-ग़म है उम्र भर के लिये
मैं कबसे जाग रहा हूँ बस एक सहर के लिये

दिल अगर उनके दीदार को तरसता है
उन्ही के ग़म में लहू आँख से बरसता है
शरीक़-ए-हाल बने थे जो उम्र भर के लिये
मैं कबसे जाग रहा हूँ बस एक सहर के लिये

मेरे ही दम से थी आबाद रहगुज़र उनकी
मेरी तरफ़ नहीं उठती है अब नज़र उनकी
जहाँ को छोड़ दिया जिनकी रहगुज़र के लिये
मैं कबसे जाग रहा हूँ बस एक सहर के लिये

ये इल्तिजा है कि अब उम्र मुख्तसर करदे
मैं जिसकी रात ना देखूँ वोही सहर करदे
इलाही क्य ये शब-ए-ग़म है उम्र भर के लिये
मैं कबसे जाग रहा हूँ बस एक सहर के लिये
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