% BA31.s isongs output
\stitle{bujhii huii shamaa kaa dhuaa.N huu.N, aur apane markaz ko jaa rahaa huu.N}
\lyrics{Jigar Moradabadi}
\singers{Begum Akhtar}
बुझी हुई शमा का धुआँ हूँ, और अपने मर्कज़ को जा रहा हूँ
के दिल कि हस्ती तो मिट चुकी है, अब अपनी हस्ती मिटा रहा हूँ
%[markaz = fixed station]
मोहब्बत इन्सान की है फ़ित्रत, कहा है अन्क़ा ने कर के उल्फ़त
वो और भी याद आ रहा है, मैं उस को जितना भुला रहा हूँ
ये वक़्त है मुझ पे बन्दगी का, जिसे कहो सज्दा कर लूँ वर्ना
अज़ल से ता बे-अफ़्रीनत मैं आप अपना ख़ुदा रहा हूँ
ज़बां पे लब्बैक हर नफ़स में, ज़मीं पे सज्दे हैं हर क़दम पर
चला हूँ यूँ बुतकदे को नासेह, के जैसे काबे को जा रहा हूँ
%[labbaik(allaah) = I am in your service (allaah) ]