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% BA32.s isongs output
\stitle{raah-e-aashiqii ke maare raah-e-aam tak na pahu.nche}
\lyrics{Yahya Jasdanwalla}
\singers{Begum Akhtar}



राह-ए-आशिक़ी के मारे राह-ए-आम तक न पहुँचे
कभी सुब्ह तक न पहुँचे, कभी शाम तक न पहुँचे

मुझे मस्त अगर बना दे ये निगाह-ए-मस्त तेरी
मेर हाथ क्या नज़र भी कभी जाम तक न पहुँचे

मुझे अपनी बेकसी का नहीं ग़म ख़याल ये है
कहीं बात बड़ते बड़ते तेरे नाम तक न पहुँचे

जो ये दौर बेवफ़ा है तेर ग़म तो मुस्तक़िल हो
वो हयात-ए-आशिक़ी क्या जो दवाम तक न पहुँचे

%[mustaqil = permanent; dawaam = infinity]

ये अनोखी बर्हमी है के न भूले से लबों पर
बसबील-ए-तज़्किरा भी मेरे नाम तक न पहुँचे

%[barhamii = confusion, injustice; ba_sabiil-e-tazkiraa = by way of discussion]

कहीं इस तरह भी रूठे न किसी से कोई यह्य'
के पयाम तक न आए के सलाम तक न पहु.ँचे