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\stitle{ahl-e-ulfat ke haalo.n pe ha.Nsii aatii hai}
\lyrics{Sudarshan Fakir}
\singers{Begum Akhtar}
अह्ल-ए-उल्फ़त के हालों पे हँसी आती है
लैला मजनूँ के मिसालों पे हँसी आती है
जब भी तक़मील-ए-मोहब्बत का ख़याल आता है
मुझको अपने ख़यालों पे हँसी आती है
लोग अपने लिये औरों में वफ़ा ढूँढते हैं
उन वफ़ा ढूँढनेवालों पे हँसी आती है
देखनेवालो तबस्सुम को करम मत समझो
उंहें तो देखनेवालों पे हँसी आती है
चाँदनी रात मोहब्बत में हसीन थी 'फ़ाकिर'
अब तो बीमार उजालों पे हँसी आती है