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% BA34.s isongs output
\stitle{zikr us pariivash kaa, aur phiir bayaa.N apanaa}
\lyrics{Mirza Ghalib}
\singers{Begum Akhtar}



ज़िक्र उस परीवश का, और फीर बयाँ अपना
बन गया रक़ीब आख़ीर था जो राज़दाँ अपना

%[pariivash=angel, raqiib=enemy, raazadaa.N= confidante]

मै वो क्योँ बहुत पीते बज़्म-ए-ग़ैर में यारब
आज ही हुआ मंज़ूर उन को इम्तिहाँ अपना

मंज़र इक बुलंदी पर और हम बना सकते
अर्श से इधर होता काश के मकाँ अपना

%[arsh=heaven]

हम कहाँ के दाना थे किस हुनर में यक्ता थे
बेसबब हुआ 'ग़्हलिब' दुश्मन आस्माँ अपना

%[daanaa = wise/learned, yaktaa=unique]