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\stitle{ye na thii hamaarii qismat ke visaal-e-yaar hotaa}
\lyrics{Mirza Ghalib}
\singers{Habib Wali Mohammed}



ये न थी हमारी क़िस्मत के विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते यही इन्तज़ार होता

कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीर-ए-नीमकश को
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता

कहूँ किससे मैं के क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है
मुझे क्या बुरा हा मरना अगर एक बार होता

हुए मर के हम जो रुसवा हुए क्यों न गर्क़-ए-दरिया
न कभी जनाज़ा उठता न कहीं मज़ार होता

ये मसाइल-ए-तसव्वुफ़ ये तेरा बयाँ "ग़्हलिब"
तुझे हम वली समजहते जो न बादाख़्वार होता