% MH01.s isongs output
\stitle{ab ke ham bichha.De to shaayad kabhii Khvaabo.n me.n mile.n}
\lyrics{Ahmed Faraz}
\singers{Mehdi Hasan}
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
ढूँढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती
ये ख़ज़ाने तुझे मुम्किन है ख़राबों में मिलें
तू ख़ुदा है न मेरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनो इन्साँ हैं तो क्यों इतने हिजाबों में मिलें
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नशा बड़ता है शरबीं जो शराबों में मिलें
अब न वो मैं हूँ न तु है न वो माज़ी है `फ़राज़'
जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों मे.म मिलें