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% akhtarul02.s isongs output
\stitle{aaKhirii mulaaqaat  aao ki jashn-e-marg-e-muhabbat manaae.N ham}
\lyrics{Akhtar ul Iman}
\singers{Akhtar ul Iman}



आओ कि जश्न-ए-मर्ग-ए-मुहब्बत मनाएँ हम

आती नहीं कहीं से दिल-ए-ज़िंदा की सदा
सूने पड़े हैं कूचा-ओ-बाज़ार इश्क़ के
है शम-ए-अंजुमन का नया हुस्न-ए-जाँ गुदाज़
शायद नहीं रहे वो पतंगों के वलवले
ताज़ा न रख सकेगी रिवायात-ए-दश्त-ओ-दर
वो फ़ित्नासर गए जिंहें काँटें अज़ीज़ थे

अब कुछ नहीं तो नींद से आँखें जलाएँ हम
आओ कि जश्न-ए-मर्ग-ए-मुहब्बत मनाएँ हम

सोचा न था कि आएगा ये दिन भी फिर कभी
इक बार हम मिले हैं ज़रा मुस्कुरा तो लें
क्या जाने अब न उल्फ़त-ए-देरीना याद आए
इस हुस्न्न-ए-इख़्तियार पे आँखें झुका तो लें
बरसा लबों से फूल, तेरी उम्र हो दराज़
संभले हुए तो हैं. पर ज़रा डगमगा तो लें

%[jashn-e-marg-e-muhabbat = celebration of the death of love]
%[gudaaz = melted; valavale = enthusiasm; fitnaasar = mad]
%[ulfat-e-deriinaa = old love]