ACZoom Home E-mail ITRANS ITRANS Song Book

% aleem02.s isongs output
\stitle{aziiz itanaa hii rakho ke jii sambhal jaae}
\lyrics{Obaidullah Aleem}
\singers{Obaidullah Aleem}
% Contributed by Fayaz Razvi



अज़ीज़ इतना ही रखो के जी सँभल जाए
अब इस क़दर भी न चाहो के दम निकल जाए

मिले हैं यूँ तो बहुत आओ अब मिलें यूँ भी
के रूह गर्मी-ए-अंफ़ास से पिघल जाए

मुहब्बतों में अजब है दिलों को धड़का सा
के जाने कौन कहाँ रास्ता बदल जाए

रहे वो दिल जो तमन्ना-ए-ताज़ा तर में रहे
ख़ुशा वो उम्र जो ख़्वाबों ही में बहल जाए

मैं वो चराग़-ए-सर-ए-रहगुज़ार-ए-दुनिया हूँ
जो अपनी ज़ात की तन्हाईयों में जल जाए

हर एक लहजा यही आरज़ू यही हसरत
जो आग दिल में है वो शेर में भी ढल जाए