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% ameer05.s isongs output
\stitle{kah rahii hai hashr me.n vo aa.Nkh sharmaaii huii}
\lyrics{Ameer Minai}
\singers{Ameer Minai}



कह रही है हश्र में वो आँख शर्माई हुई
हाए! कैसे इस भरी महफ़िल में रुस्वाई हुई

आईने में हर अदा को देख कर कहते हैं वो
आज देखा चाहिये किस किस की है आई हुई

कह तू अए गुल्चीं असीरान-ए-कफ़स के वास्ते
तोड़ लूं दो चार कलियाँ मैं भी मुर्झाई हुई

मैं तो राज़-ए-दिल छुपाऊँ पर छिपा रहने भी दे
जान की दुश्मन ये ज़ालिम आँख ललचाई हुई

ग़मज़ा-ओ-नाज़-ओ-अदा सब में है हया का लगाओ
हाए रे! बचपन की शोख़ी भी है शर्माई हुई

वस्ल में ख़ाली हुई रक़ीबों से महफ़िल तो क्या
शर्म भी जाए तो जानूँ के तन्हाई हुई

गर्द उड़ी आशिक़ की तुर्बत से तो झुंझला के कहा
वाह सर चड़ने लगी पाँव की ठुकराई हुई