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\stitle{jo utar ke ziinaa-e-shaam se, terii chashm-e-Khush me.n samaa ga_e}
\singers{Amjad Islam Amjad}
जो उतर के ज़ीना-ए-शाम से, तेरी चश्म-ए-ख़ुश में समा गए
वही जलते बुझते से महर-ओ-माह मेरे बाम-ओ-दर को सजा गए
ये अजीब खेल है इश्क़ का, मैं ने आप देखा ये मोजेज़ा
वो जो लफ़्ज़ मेरे गुमान में थे, वो तेरी ज़ुबाँ पर आ गए
वो जो गीत तुमने सुना नहीं, मेरी उम्र भर का रियाज़ था
मेरे दर्द की थी दास्ताँ, जिसे तुम हँसी में उड़ा गए
वो चराग़-ए-जाँ कभी जिस की लौ, न किसी हवा से निगूँ हुई
तेरी बेवफ़ाई के वासवा उसे चुपके चुपके बुझा गए
वो था चाँद शाम-ए-विसाल का, के था रूप तेरे जमाल का
मेरि रूह से मेरी आँख तक किसी रौशनी में नहा गए
ये जो बंदगान-ए-नियाज़ है, ये तमाम है वो लशकरी
जिंहें ज़िंदगी ने अमन न दी, तो तेरे हुज़ूर में आ गए
तेरी बेरुख़ी के दयार में, मैं हवा के साथ हवा हुआ
तेरे आईने की तलाश में, मेरे ख़्वाब चेहरा गँवा गए
तेरे वासवाओं के फ़िशर में, तेरा शरर-ए-रंग उजड़ गया
मेरी ख़्वाहिशों के ग़ुबार में, मेरे माह-ओ-साल-ए-वफ़ा गए
वो अजीब फूल से लफ़्ज़ थे, तेरे होंठ जिनसे महक उठे
मेरे दश्त-ए-ख़्वाब में दूर तक, कोई बाग़ जैसे लगा गए
मेरी उम्र से न सिमट सके, मेरे दिल में इतने सवाल थे
तेरे पास जितने जवाब थेय, तेरी इक निगाह में आ गए