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\stitle{labo.n pe narm tabassum rachaa ke dhul jaaye.N}
\singers{Ahmed Nadeem Qasmi #9}



लबों पे नर्म तबस्सुम रचा के धुल जायेँ
ख़ुदा करे मेरे आँसू किसी के काम आयेँ

जो इब्तदा-ए-सफ़र में दिये बुझा बैठे
वो बदनसीब किसी का सुराग़ क्या पायेँ

तलाश-ए-हुस्न कहाँ ले चली ख़ुदा जाने
उमंग थी कि फ़क़त ज़िंदगी को अपनायेँ

बुला रहे हैं उफ़क़ पर जो ज़र्द-रू टीले
कहो तो हम भी फ़साने के राज़ हो जायेँ

न कर ख़ुदा के लिये बार-बार ज़िक्र-ए-बहिश्त
हम आस्माँ का मुकर्रर फ़रेब क्यों खायेँ

तमाम मयकदा सुन-सान मयगुसार उदास
लबों को खोल कर कुछ सोचती हैं मीनायेँ