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\stitle{mujhe kal meraa ek saathii milaa}
\singers{Ahmed Nadeem Qasmi #11}
मुझे कल मेरा एक साथी मिला
जिस ने ये राज़ खोला
के "अब जज़्बा-ओ-शौक़ की वहशतों के ज़माने गये"
फिर वो आहिस्ता-आहिस्ता चारों तरफ़ देखता
मुझ से कहने लगा
"अब बिसात-ए-मुहब्बत लपेटो
जहाँ से भी मिल जायें दौलत - समेटो
ग़र्ज़ कुछ तो तहज़ीब सीखो"