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\stitle{avval-e-shab vo bazm kii raunaq, shamaa bhii thii paravaanaa bhii}
\lyrics{Arzoo Lucknawi}
\singers{Arzoo Lucknawi}



अव्वल-ए-शब वो बज़्म की रौनक़, शमा भी थी परवाना भी
रात के आख़िर होते होते, ख़त्म था ये अफ़साना भी

क़ैद को तोड़के निकला जब मैं उठके बगूले साथ हुए
दश्त-ए-अदम तक जंगल जंगल भाग चला वीराना भी

हाथ से किसने साग़र पटका मौसम की बेकैफ़ी पर
इतना बरसा टूट के बादल डूब चला मैख़ाना भी

ख़ून ही की शिर्कत वो क्यों न हो, शिर्कत चीज़ है झगड़े की
अपनों से वो देख रहा हूँ जो न करे बेगाना भी

एक लगी के दो हैं असर, उर दोनों हस्ब-ए-मरातिब हैं
लौ जो लगाए शमा खड़ी है रक़्स में है परवाना भी