ACZoom Home E-mail ITRANS ITRANS Song Book

% azad01.s isongs output
\stitle{manzil-e-jaanaa.N ko jab ye dil ravaa.N thaa dosto}
\lyrics{Jagannath Azad}
\singers{Jagannath Azad}
% Contributed by: Dinesh Shenoy



मन्ज़िल-ए-जानाँ को जब ये दिल रवाँ था दोस्तो
तुम को मैं कैसे बताऊँ क्या समाँ था दोस्तो

हर गुमाँ पहने हुए था एक मल्बूस-ए-यक़ीं
हर यक़ीं जाँ दादा-ए-हुस्न-ए-गुमाँ था दोस्तो

दिल कि हर धड़कन मकान-ओ-लामकाँ पर थी मुहीत
हर नफ़स राज़-ए-दोआलम का निशाँ था दोस्तो

क्या ख़बर किस जुस्तजू में इस क़दर आवारा था
दिल के जो गन्जीना-ए-सर्र-ए-निहाँ था दोस्तो

ढूँढने पर भी न मिलता था मुझे अपना वुजूद
मैं तलाश-ए-दोस्त में यूँ बेनिशाँ था दोस्तो

मर्कद-ए-इक़्बल पर हाज़िर थी जब दिल कि तड़प
ज़िंदगी का एक पर्दा दर्मियाँ था दोस्तो

क़ुर्ब ने पैदा किया था ख़ुद ही दूरि का समाँ
फ़ासला वर्न हायिल कहाँ था दोस्तो ?

बेख़ुदी में जब मेरे होंटों ने चूमा क़ब्र को
मेरे सीन से गदा-ए-फ़ुर्सियाँ था दोस्तो

रू-ब-रू-ए-जल्वा-ए-मर्कद, वुजोओद-ए-कम अयार
ज़र्र-ए-नाक़िस शर्मसार-ए-इम्तेहाँ था दोस्तो

पर्तव-ए-दिल में निहाँ थी तह-बतेह ये ख़ामोशी
इश्क़ का वो भी इक इज़्हार-ए-बयाँ था दोस्तो

जल्वागाह-ए-दोस्त का आलम कहूँ मैं तुम से क्या?
जल्वा हि जल्वा वहाँ था, मैं कहाँ था दोस्तो?

सज्दगाह-ए-ख़ुर्शियाँ था, याँ न जाने क्या था वो
जो मेरी नज़रों के आगे आस्ताँ था दोस्तो

दिल ने हर लम्हे को देखा इक निराले रंग में
लम्हा लम्हा दास्ताँ दर दास्ताँ था दोस्तो

जिस के शे'र-ओ-नग़्मगी पर वुसत-ए-आलम थी तंग
हर सुबह को वोह दोपह्रे बेकराँ था दोस्तो

सो रहा था ख़ाक के नीचे जहान-ए-ज़िंदगी
राज़-ए-हस्ती मेरी नज़्रों पर अयाँ था दोस्तो

काश तुम भी मेरी पल्कों का नज़ारा देखते
ये नज़ारा कह्क़शाँ दर कह्क़शाँ था दोस्तो