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% azad03.s isongs output
\stitle{mumkin nahii.n ki bazm-e-tarab phir sajaa sakuu.N}
\singers{Jagannath Azad}



मुम्किन नहीं कि बज़्म-ए-तरब फिर सजा सकूँ
अब ये भी है बहुत कि तुम्हें याद आ सकूँ

%[bazm-e-tarab = gathering of happiness]

ये क्या तिलिस्म है कि तेरी जल्वागाह से
नज़दीक आ सकूँ न कहीं दूर जा सकूँ

%[tilism = magic; jalvaa = to appear; gaah = place]

ज़ौक़-ए-निगाह और बहारों के दर्मियाँ
पर्दे गिरे हैं वो, कि न जिनको उठा सकूँ

%[zauq = tasteful]

किस तरह कर सको बहारों को मुतमुइन
अहल-ए-चमन, जो मैं भी चमन में न साकूँ

%[mutamu_in = satisfied; ahal-e-chaman = residents of the garden]

तेरी हसीं फ़िज़ा में मेरे ऐ नये वतन
ऐसा भी है कोई, जिसे अपना बना सकूँ

%[fizaa = environment]

'आज़द' साज़-ए-दिल पे हैं रक़्साँ के ज़म-ज़मे
ख़ुद सुन सकूँ मगर न किसी को सुना सकूँ

%[raqsaa.N = dance; zam-zame = tremors]