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\stitle{na jii bhar ke dekhaa na kuchh baat kii}
\singers{Bashir Badr #17}
% Additions by Harshad Kamat
न जी भर के देखा न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की
कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं
कहाँ दिन गुज़ारा कहाँ रात की
उजालों की परियाँ नहाने लगीं
नदी गुनगुनाई ख़यालात की
मैं चुप था तो चलती हवा रुक गई
ज़ुबाँ सब समझते हैं जज़्बात की
सितारों को शायद ख़ह्बर ही नहीं
मुसाफ़िर ने जाने कहाँ रात की
मुक़द्दर मेरे चश्म-ए-पुर'अब का
बरसती हुई रात बरसात की