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\stitle{sar se chaadar badan se qabaa le ga_ii}
\singers{Bashir Badr #28}



सर से चादर बदन से क़बा ले गई
ज़िंदगी हम फ़क़ीरों से क्या ले गई

मेरी मुट्ठी में सूखे हुये फूल हैं
ख़ुश्बूओं को उड़ाकर हवा ले गई

मैं समुंदर के सीने में चट्टान था
रात एक मौज आई बहा ले गई

हम जो काग़ज़ थे अश्कों से भीगे हुये
क्यों चिराग़ों की लौ तक हवा ले गई

चाँद ने रात मुझको जगा कर कहा
एक लड़की तुम्हारा पता ले गई

मेरी शोहरत सियासत से महफ़ूस है
ये तवायफ़ भी इस्मत बचा ले गई