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% behzad04.s isongs output
\stitle{ai jazbaa-e-dil gar mai.n chaahuu.N har chiiz muqaabil aa jaae}
\singers{Behzad Lucknawi #4}
% Additions by Fayaz Razvi



ऐ जज़्बा-ए-दिल गर मैं चाहूँ हर चीज़ मुक़ाबिल आ जाए
मंज़िल के लिये दो गाम चलूँ और सामने मंज़िल आ जाए

ऐ दिल की ख़लिश चल यूँ ही सही, चलता तो हूँ उनकी महफ़िल में
उस वक़्त मुझे चौंका देना जब रंग पे महफ़िल आ जाए

ऐ रहबर-ए-कामिल चलने को तय्यार तो हूँ पर याद रहे
उस वक़्त मुझे भटका देना जब सामने मंज़िल आ जाए

हाँ याद मुझे तुम कर लेना आवाज़ मुझे तुम दे लेना
इस राह-ए-मुहब्बत में कोई दरपैश जो मुश्किल आ जाए

अब क्यूँ ढूँढू वो चश्म-ए-करम होने दे सितम बला-ए-सितम
मैं चाहता हूँ ऐ जज़्बा-ए-ग़म मुश्किल पस-ए-मुश्किल आ जाए

इस जज़्ब-ए-दिल के बारे में इक मश्वरा तुम से लेता हूँ
उस वक़्त मुझे क्या लाज़िम है जब तुझ पे मेरा दिल आ जाए

ऐ बर्क़-ए-तजल्लि क्या तूने मुझको भी मूसा समझा है
मैं तूर नहीं जो जल जाऊँ जो चाहे मुक़ाबिल आ जाए