% bzaidi01.s isongs output
\stitle{dil pe karate hai.n dimaaGo.n pe asar karate hai.n}
\singers{Baqar Zaidi}
दिल पे करते हैं दिमाग़ों पे असर करते हैं
हम अजब लोग हैं ज़ेहनों में सफ़र करते हैं
जब सरापे पे कहीं उस के नज़र करते हैं
मीर साहब की तरह उम्र बसर करते हैं
बंदिशें हम को किसी हाल गवारा ही नहीं
हम तो वो लोग हैं दीवार को दर करते हैं
वक़्त कि तेज़-ख़रामी हमें क्या रोकेगी
जंबिश-ए-कल्क से सदियों का सफ़र करते हैं
नक़्श-ए-पा अपना कहीं राह में होता ही नहीं
सर से करते हैं मोहिम जब कोई सर करते हैं
हम-नशीं ख़ूब है ये महफ़िल-ए-याराँ के यहाँ
वो सलिक़ा है के ऐबों को हुनर करते हैं
क्या कहें हाल तेरा ऐ मुतमद्दिन दुनिया
जंवर भी नहीं करते जो बशर करते हैं
हम को दुश्मन की भि तक़्लीफ़ गवारा न हुई
लोग एहबाब से भी सर्फ़-ए-नज़र करते हैं
मर्क़दों पे तो चराग़ाँ है शब-ओ-रोज़ मगर
उम्र कुछ लोग अ.धेरों में बसर करते हैं
तज़करा मीर का ग़ालिब की ज़बाँ तक आया
ऐतराफ़-ए-हुनर, अर्बाब-ए-हुनर करते हैं