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% eliya01.s isongs output
\stitle{Sazaa  har baar mere saamane aatii rahii ho tum}
\singers{Jaun Eliya #1}
% Contributed by Fayaz Razvi



हर बार मेरे सामने आती रही हो तुम
हर बार तुमसे मिल के बिछड़ता रहा हूँ मैं
तुम कौन हो ये ख़ुद भी नहीं जानती हो तुम
मैं कौन हूँ ये ख़ुद भी नहीं जानता हूँ मैं
तुम मुझ को जान कर ही पड़ी हो आज़ाब में
और इस तरह ख़ुद अपनी सज़ा बन गया हूँ मैं

तुम जिस ज़मीन पर हो मैं उसका ख़ुदा नहीं
बस सर बसर अज़ीयत-ओ-आज़ार ही रहो
बेज़ार हो गैइ हो बहुत ज़िंदगी से तुम
जब बस में कुछ नहीं है तो बेज़ार ही रहो
तुम को यहाँ के साया-ए-परतो से क्या ग़रज़
तुम अपने हक़ में बीच की दीवार ही रहो

मैं इब्तदा-ए-इश्क़ में बेमहर ही रहा
तुम इन्तहा-ए-इश्क़ का मियार ही रहो
तुम ख़ून थूकती हो ये सुन कर ख़ुशी हुई
इस रंग इस अदा में भी पुरकार ही रहो

मैं ने ये कब कहा था के मुहब्बत में है नजात
मैं ने ये कब कहा था के वफ़दार ही रहो
अपनी मता-ए-नाज़ लुटा कर मेरे लिये
बाज़ार-ए-इल्तफ़ात में नादार ही रहो

जब मैं तुम्हें निशात-ए-मुहब्बत न दे सका
ग़म में कभी सुकून-ए-रफ़ाक़त न दे सका
जब मेरे सारे चराग़-ए-तमन्ना हवा के हैं
जब मेरे सारे ख़्वाब किसी बेवफ़ा के हैं
फिर मुझे चाहने का तुम्हें कोई हक़ नहीं
तन्हा कराहाने का तुम्हें कोई हक़ नहीं