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% faiz34.s isongs output
\stitle{tum jo pal ko Thahar jaao to ye lamhe.n bhii}
\singers{Faiz Ahmed Faiz}
% Contributed by Tabassum Hijazi



तुम जो पल को ठहर जाओ तो ये लम्हें भी
आनेवाले लम्हों की अमानत बन जायेँ
तुम जो ठहर जाओ तो ये रात, महताब
ये सब्ज़ा, ये गुलाब और हम दोनों के ख़्वाब
सब के सब ऐसे मुबहम हों कि हक़ीक़त हो जायेँ
तुम ठहर जाओ कि उनवान की तफ़सीर हो तुम
तुम से तल्ख़ी-ए-औक़ात का मौसम बदले
रात तो क्या बदलेगी, हाअलत तो क्या बदलेंगे
तुम जो ठहर जाओ तो मेरी ज़ात का मौसम बदले
महार्बाँ हो के न ठहरो तो फिर यूँ ठहरो
जैसे पल भर को कोई ख़्वाब-ए-तमन्ना ठहरे
जैसे दरवेश-ए-मदा-नोश के प्याले में कभी
एक दो पल के लिये तल्ख़ी-ए-दुनिया ठहरे
ठहर जाओ के मदारत मैखाने से
चलते चलते कोई एक-आध सुबू हो जाये
इस से पहले के कोई लम्हा आइन्दा क तीर
इस तरह आये के पेवस्त-ए-गुलू हो जाये