% faiz44.s isongs output
\stitle{ham saadaa hii aise the, kii yuu.N hii paziiraa_ii}
\singers{Faiz Ahmed Faiz #44}
% Contributed by Sana Ali
हम सादा ही ऐसे थे, की यूँ ही पज़ीराई
जिस बार ख़िज़ाँ आई, समझे कि बहार आई
आशोब-ए-नज़र से की हमने चम्न-आराई
जो शय भी नज़र आई गुल-रंग नज़र आई
उम्मीद-ए-तलत्तुफ़ में रंजीदा रहे दोनों
तू और तेरी महफ़िल मैं और मेरी तनहाई
वाँ मिल्लत-ए-बुल-हवसाँ और शोर-ए-वफ़ाजुई
याँ ख़िल्वत-ए-कम-सुख़नाँ और लज़्ज़त-ए-रुसवाई
यक-जान न हो सकिये अंजान्न बन सकिये
यों टूट गई दिल में शमशीर-ए-शनासाई
इस तन की तरफ़ देखो जो क़त्ल-गह-ए-दिल है
क्या रक्खा है मक़्तल में ऐ चश्म-ए-तमाशाई