% faiz47.s isongs output
\stitle{tumhaarii yaad ke jab zaKhm bharane lagate hai.n}
\singers{Faiz Ahmed Faiz #47}
तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं
हदीस-ए-यार के उनवाँ निखरने लगते हैं
तो हर हरीम में गेसू सँवरने लगते हैं
%[hariim - house]
हर अजनबी हमें महरम दिखाई देता है
जो अब भी तेरी गली गली से गुज़रने लगते हैं
%[maharam = acquaintance]
सबा से करते हैं ग़ुर्बत-नसीब ज़िक्र-ए-वतन
तो चश्म-ए-सुबह में आँसू उभरने लगते हैं
%[Gurbat-nasiib = those in exile; chashm = eye]
वो जब भी करते हैं इस नुत्क़-ओ-लब की बख़ियागरी
फ़ज़ा में और भी नग़्में बिखरने लगते हैं
%[nutq-o-lab = speech and lips]
दर-ए-क़फ़स पे अँधेरे की मुहर लगती है
तो "फ़ैज़" दिल में सितारे उतरने लगते हैं
%[dar-e-qafas = door of the prison]