% faiz53.s isongs output
\stitle{kuchh muhatasibo.n kii Khilavat me.n kuchh vaa-iz ke ghar jaatii hai}
\singers{Faiz Ahmed Faiz #53}
कुछ मुहतसिबों की ख़िलवत में कुछ वा-इज़ के घर जाती है
हम बादा-कशों के हिस्से को अब जाम में कम कम आती है
यूँ अर्ज़-ओ-तलब से कब ऐ दिल पत्थर-दिल पानी होते हैं
तुम लाख रज़ा की ख़ू डालो कब ख़ू-ए-सितमगर जाती है
बेदाद-गरों की बस्ती है याँ दाद कहाँ फ़रियाद कहाँ
सर फोरती फिरती है नादाँ फ़रियाद जो दर दर जाती है
हाँ जी के ज़याँ की हम को भी तश्वीश है लेकिन क्या कीजिये
हर राह जो उधर को जाती है मक़्तल से गुज़र कर जाती है
अब कूचा-ए-दिलबर का रह-रौ रहज़न भी बने तो बात बने
पहरे से उदू टलते ही नहीं और रात बराबर जाती है
हम अहल-ए-क़फ़स तन्हा भी नहीं हर रोज़ नसीम-ए-सुबह-ए-वतन
यादों से मुअत्तर आती है अश्कों से मुनव्वर जाती है