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\stitle{agar badan ek makaan hai}
\lyrics{Farhat Shehzad}
\singers{Farhat Shehzad}



अगर बदन एक मकान है
मकान भी एक किराए का
और इस में हम मुक़ीम हैं
किराएदार की तरह
तो मालिके-मकान को कोई
ख़बर भेज दे
के लुट चुके हैं हम
हमारे पास अब नहीं है
कोई ऐसी शैह
की जिसको हम किराये के बतौर
उसको दे सकें
बग़ैर कुछ अदा किये
ठहरना इस मकान में
हमारी ज़ख़्म ज़ख़्म पर
बुलंद सर पनाह क़ुबूल कर सके
नहीं है ये हमें यक़ीं
तो मालिके-मकान
या तो आ के सम्भाल ले वगर्ना फिर
हमें ये ख़ुद मकान
उसको छोड़ कर सफ़र के बाँधनी पड़ेगी
ये शिकस्ता-तर कमर