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\stitle{jadaa-e-fan me.n ba.De saKht muqaam aate hai.n}
\singers{Dilawar Figaar}



जदा-ए-फ़न में बड़े सख़्त मुक़ाम आते हैं
मर के रह जाता है फ़नकार अमर होने तक

कितने ग़ालिब थे जो पैदा हुये और मर भी गये
क़द्रदानं को तख़ल्लुस कि कःअबर होने तक

कितने इक़बाल रह-ए-फ़िक्र में उठे लेकिन
रास्ता भूल गये ख़त्म-ए-सफ़र होने तक

कितने शब्बीर हसन खाँ न बने जोश कभी
मर गये कितने सिकन्देर भी जिगर होने तक

फ़ैज़ रंग भी अशार में आ सकता था
उंगलियाँ साथ तो दें ख़ून में तर होने तक

चंद ज़र्रों हि को मिलती है ज़िया-ए-ख़ुर्शीद
चंद तारे ही चमकते हैं सहर होने तक

दिल-ए-शायर पे कुछ ऐसी ही गुज़रती है 'फ़िगार'
जो किसी क़तरे पे गुज़रे है गुहर होने तक