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% firaq08.s isongs output
\stitle{maut ik giit raat gaatii thii}
\singers{Firaq Gorakhpuri #8}



मौत इक गीत रात गाती थी
ज़िंदगी झूम-झूम जाती थी

कभी दीवाने रो भी पड़ते थे
कभी तेरी भी याद आती थी

किस के मातम में चाँद तारों से
रात बज़्म-ए-अज़ा सजाती थी

%[bazm-e-azaa = a wake (gathering of mourners)]

रोते जाते थे तेरे हिज्र नसीब
रात फ़ुर्क़त की ढलती जाती थी

%[furqat = separation]

खोई खोई सी रहती थी वो आँख
दिल का हर भेद पा भी जाती थी

ज़िक्र था रंग-ओ-बू का औ' दिल में
तेरी तस्वीर उतरती जाती थी

हुस्न में थी इन आँसूओं की चमक
ज़िंदगी जिन में मुस्कुराती थी

दर्द-ए-हस्ती चमक उठा जिस में
वो हम अहल-ए-वफ़ा की छाती थी

तेरे उन आँसूओं की याद आई
ज़िंदगी जिन में मुस्कुराती थी

था सुकूत-ए-फ़ज़ा तरन्नुम-रेज़
बू-ए-गेसू-ए-यार गाती थी

ग़म-ए-जानाँ हो याँ ग़म-ए-दौराँ
लौ सी कुछ दिल में झिल-मिलाती थी

ज़िंदगी को वफ़ा की राहों में
मौत ख़ुद रौशनी दिखाती थी

बात क्या थी कि देखते ही तुझे
उल्फ़त-ए-ज़ीस्त भूल जाती थी

थे न अफ़लाक गोश बर आवाज़
बेख़ुदी दास्ताँ सुनाती थी

करवटें ले उफ़क़ पे जैसे सुबह
कोई दोशिज़ा रस-मसाती थी

ज़िंदगी ज़िंदगी को वक़्त-ए-सफ़र
कारवाँ-कारवाँ छुपाती थी

सामने तेरे जैसे कोई बात
याद आ-आ के भूल जाती थी

वो तेरा ग़म हो या ग़म-ए-दुनिया
शम्म-सी दिल में झिल-मिलाती थी

ग़म की वो दास्तान-ए-नीम-शबी
आस्मानों कोओ नींद आती थी

मौत भी गोश भर सदा थी "फ़िरक़"
ज़िंदगी कोई गीत गाती थी