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\stitle{ye maanaa zi.ndagii hai chaar din kii}
\singers{Firaq Gorakhpuri #9}



ये माना ज़िंदगी है चार दिन की
बहुत होते हैं यारो चार दिन भी

ख़ुदा को पा गया वाइज़ मगर है
ज़रूरत आदमी को आदमी की

मिला हूँ मुस्कुरा के उस से हर बार
मगर आँखों में भी थी कुछ नमी सी थी

मुहब्बत में कहें क्या हाल दिल का
ख़ुशी ही काम आती है न ग़म ही

भरी महफ़िल में हर एक से बचाकर
तेरी आँखों ने मुझसे बात कर ली

लड़कपन की अदा है जान-लेवा
ग़ज़ब की छोकरी है हाथ-भर की

रक़ीब-ए-ग़मज़दा अब सब्र कर ले
कभी उस से मेरी भी दोस्ती थी