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% firaq13.s isongs output
\stitle{ab aksar chup-chup se rahe hai.n yuu.N hii kabhuu lab khole hai.n}
\singers{Firaq Gorakhpuri #13}



अब अक्सर चुप-चुप से रहे हैं यूँ ही कभू लब खोले हैं
पहले "फ़िरक़" को देखा होता अब तो बहुत कम बोले हैं

दिन में हम को देखने वालो अपने अपने हैं औक़ात
जाओ न तुम इन ख़ुस्क आँखों पर हम रातों को रो ले हैं

फ़ितरत मेरी इश्क़-ओ-मुहब्बत क़िस्मत मेरी तन्हाई
कहने की नौबत ही न आई हम भी कसू के हो ले हैं

बाग़ में वो ख़्वाब-आवर आलम मौज-ए-सबा के इशारों पर
डाली डाली नौरस पत्ते सहस सहज जब डोले हैं

उफ़ वो लबों पर मौज-ए-तबस्सुम जैसे करवटें लें कौंदें
हाय वो आलम जुम्बिश-ए-मिज़गाँ जब फ़ित्ने पर तोले हैं

इन रातों को हरीम-ए-नाज़ का इक आलम होये है नदीम
खल्वत में वो नर्म उंगलियाँ बंद-ए-क़बा जब खोले हैं

%[hariim-e-naaz = ; khalvat = solitude; ba.nd-e-qabaa = buttons of the dress]

ग़म का फ़साना सुनने वालो आख़िर-ए-शब आराम करो
कल ये कहानी फिर छेड़ेंगे हम भी ज़रा अब सो ले हैं

%[aaKir-e-shab = end of night]

हम लोग अब तो पराये से हैं कुछ तो बताओ हाल-ए-"फ़िरक़"
अब तो तुम्हीं को प्यार करे हैं अब तो तुम्हीं से बोले हैं