ACZoom Home E-mail ITRANS ITRANS Song Book

% ghalib64.s isongs output
\stitle{zikr us pariivash kaa, aur phiir bayaa.N apanaa}
\lyrics{Mirza Ghalib}
\singers{Mirza Ghalib}



ज़िक्र उस परीवश का, और फीर बयाँ अपना
बन गया रक़ीब आख़ीर था जो राज़दाँ अपना

%[pariivash=angel/beauty/fairy, raqiib=enemy, raazadaa.N=friend]

मै वो क्योँ बहुत पीते बज़्म-ए-ग़ैर में यारब
आज ही हुआ मंज़ूर उन को इम्तिहाँ अपना

मंज़र इक बुलंदी पर और हम बना सकते
अर्श से इधर होता काश के मकाँ अपना

%[arsh=heaven]

दे वो जिस क़दर ज़िल्लत हम हँसी में टलेंगे
बारे आश्न निकला उनका पासबाँ अपना

दर्द-ए-दिल लिखूँ कब तक?  ज़ाऊँ उन को दिखला दूँ
उँगलियाँ फ़िगार अपनी ख़ामाख़ूँ_चकाँ अपना

%[figaar = wounded/sore, Kaam = inexpert/green/raw/immature]
%[KaamaaKuu.N=young blood, chakaa.N=dripping]

घीसते घीसते मिट जाता आप ने अबस बदला
नंग-ए-सज्दा से मेरे संग-ए-आस्ताँ अपना

ता करे न ग़माज़ी, कर लिया है दुश्मन को
दोस्त की शिकायत में हम ने हम-ज़बाँ अपना

हम कहाँ के दाँआ थे किस हुनर में यक्ता थे
बेसबब हुआ 'ग़्हलिब' दुश्मन आस्माँ अपना

%[daa.Naa = wise/learned, yaktaa=unique]