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\stitle{husn-e-beparavaah ko Khud_bib-o-Khudaaraa kar diyaa}
\lyrics{Hasrat Mohani}
\singers{Hasrat Mohani}



हुस्न-ए-बेपरवाह को ख़ुद्बिब-ओ-ख़ुदारा कर दिया
क्या किया मैं ने कि इज़हार-ए-तमन्ना कर दिया

बड़ गयीं तुमसे तो मिलकर और भी बेताबियाँ
हम ये समझे थे कि अब दिल को शकेबा कर दिया

पड़के तेरा ख़त मेरे दिल की अजब हालत हुई
इज़्तराब-ए-शौक़ ने एक हश्र बर्पा कर दिया

हम रहे याँ तक तेरी खिद्मत में सर्गर्म-ए-नयाज़
तुझको आख़िर आशना-ए-नज़-ए-बेजा कर दिया

अब नहीं दिल को किसी सूरत किसी पहलू क़रार
इस निघत-ए-नाज़ ने क्या सहिर ऐसा कर दिया

इश्क़ से तेरे बड़े क्या क्या दिलों के मर्तबे
मह्र ज़र्रों को दिया क़त्रों को दरिया कर दिया

तेरी महफ़िल से उठाता ग़ैर मुझको क्या मजाल
देखता था मैं कि तूने भी इशारा कर दिया

सब ग़लत कहते थे लुत्फ़-ए-यार को वजह-ए-सुकून
दर्द-ए-दिल इस ने तो 'ःअस्रत' और दूना कर दिया