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\stitle{jazb-e-kaamil ko asar apanaa dikhaa denaa thaa}
\lyrics{Hasrat Mohani}
\singers{Hasrat Mohani}



जज़्ब-ए-कामिल को असर अपना दिखा देना था
मेरे पहलू में उंहें ला के बिठा देना था

कुछ तो देना था तेरे तग़ाफ़ुल का जवाब
या ख़ुदा बन के तुझे दिल से भुला देना था

तैर-ए-जाँ के सिवा किसको बनाते क़ासिद
उस सितम्गर को पैग़ाम-ए-क़ज़ा देना था

दर्द मोहताज-ए-दवा हो ये सितम है या रब
जब दिया था तो कुछ इस से भी सवा देना था

वो जो बिगड़े तो ख़फ़ा तुम भी हुए क्यों "ःअस्रत"
पा-ए-नखुवत पे सर-ए-शौक़ झुका देना था