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\stitle{to.D kar ahad-e-karam naa-aashanaa ho jaa_iye}
\singers{Hasrat Mohani #8}
तोड़ कर अहद-ए-करम ना-आशना हो जाइये
बंदा परवर जाइये अच्छा ख़फ़ा हो जाइये
राह में मिलिये कभी मुझसे तो अज़राह-ए-सितम
होँठ अपने काट कर फ़ौरन जुदा हो जाइये
जी में आता है के उस शोख़-ए-तग़ाफ़ुल केश से
अब न मिलिये फिर कभी और बेवफ़ा हो जाइये
हाये रे बे-इख़्तियारी ये तो सब कुछ हो मगर
उस सरापा नाज़ से क्यूँ कर ख़फ़ा हो जाइये