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% hjaipuri06.s isongs output
\stitle{ham raato.n ko uTh uTh ke jin ke liye rote hai.n}
\singers{Hasrat Jaipuri #6}
% Contributed by Bitan Halder



हम रातों को उठ उठ के जिन के लिये रोते हैं
वो ग़ैर की बाहों में आराम से सोते हैं

हम अश्क जुदाई के गिरने ही नहीं देते
बेचैन सी पलओं में मोती से पिरोते हैं

होता चला आया है बेदर्द ज़माने में
सच्चाई की राहों में काँटे सभी बोतें हैं

अंदज़-ए-सितम उन का देखे तो कोई "ःअस्रत"
मिलने को तो मिलते हैं नश्तर से चुभोते हैं