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\stitle{ye shab-e-firaq ye bebasii hai.n qadam qadam pe udaasiyaa.N}
\singers{Hasan Rizvi #2}



ये शब-ए-फ़िरक़ ये बेबसी
हैं क़दम क़दम पे उदासियाँ
मेरा साथ कोई न दे सका
मेरी हसरतें हैं धुआँ धुआँ

मैं तड़प तड़प के जिया तो क्या
मेरे ख़्वाब मुझ से बिछड़ गये
मैं उदास घर की सदा सही
मुझे दे न कोई तसल्लियाँ

चली ऐसी दर्द की आँधियाँ
मेरे दिल की बस्ती उजड़ गई
ये जो राख-सी है बुझी बुझी
हैं इसी में मेरी निशानियाँ

ये फ़िज़ा जो गर्द-ओ-ग़ुबार है
मेरी बेकसी का मज़ार है
मैं वो फूल हूँ जो न खिल सका
मेरी ज़िंदगी में वफ़ा कहाँ