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\stitle{mere Khudaa mujhe itanaa to mo'atabar kar de}
\lyrics{Iftikhar Arif}
\singers{Iftikhar Arif}



मेरे ख़ुदा मुझे इतना तो मो'अतबर कर दे
मैं जिस मकान में रहता हूँ उस को घर कर दे

ये रौशनी के त'अक़ुब में भागता हुआ दिन
जो थक गया है तो अब इस को मुख़्तसर कर दे

मैं ज़िंदगी की दुआ माँगने लगा हूँ बहुत
जो हो सके तो दुआओं को बेअसर कर दे

सितारा-ए-सहरी डूबने को आया है
ज़रा कोई मेरे सूरज को बा-ख़बर कर दे

मेरी ज़मीं मेरा आख़री हवाला है
सो अमिं रहूँ न रहूँ उस को बारवर कर दे

मैं अपने ख़्वाब से कट कर जियूँ तो मेरा ख़ुदा
उजाड़ दे मेरी मुट्ठी को दर-ब-दर कर दे