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\stitle{ye ab khulaa hai ki koii bhii ma.nzar meraa na thaa}
\lyrics{Iftikhar Arif}
\singers{Iftikhar Arif}
ये अब खुला है कि कोई भी मंज़र मेरा न था
मैं जिस में रह रहा था वही घर मेरा न था
मैं जिस को एक उम्र सम्भाले फिरा किया
मिट्टी बता रही वो पैकर मेरा न था
मौज-ए-हवा-ए-शहर-ए-मुक़द्दर जवाब दे
दरिया मेरे न थे कि समंदर मेरा न था
फिर भी तो संग-सार किया जा रहा हूँ मैं
कहते हैं नाम तक सर-ए-महज़र मेरा न था
सब लोग अपने अपने कबीलों के साथ थे
एक मैं ही था कि कोई भी लश्कर मेरा न था