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% jakhtar03.s isongs output
\stitle{misaal isakii kahaa.N hai zamaane me.n}
\lyrics{Javed Akhtar}
\singers{Javed Akhtar}



मिसाल इसकी कहाँ है ज़माने में
कि सारे खोने के ग़म पाये हमने पाने में

वो शक्ल पिघली तो हर शै में ढल गैइ जैसे
अजीब बात हुई है उसे भुलाने में

जो मुंतज़िर न मिला वो तो हम है शर्मिंदा
कि हमने देर लगा दी पलट के आने में

लतीफ़ था वो तख़ैय्युल से, ख़्वाब से नाज़ुक
गवा दिया हमने ही उसे आज़माने में

समझ लिया था कभी एक सराब को दरिया
पर एक सुकून था हमको फ़रेब खाने में

झुका दरख़्त हवा से, तो आँधियों ने कहा
ज़ियादा फ़र्क़ नहीं झुक के टूट जाने में