% jalili02.s isongs output
\stitle{KaaTii hai Gam kii raat ba.De ehataraam se}
\lyrics{Ali Ahmed Jalili}
\singers{Ali Ahmed Jalili}
% Contributed by Fayaz Razvi
ख़ाटी है ग़म की रात बड़े एहतराम से
अक्सर बुझा लिया है चराग़ों को शाम से
रौशन है अपनी बज़्म और इस एहतमाम से
कुछ दिल भी जल रहे हैं चराग़ों के नाम से
मुद्दत हुई है ख़ून-ए-तमन्ना किये मगर
अब तक टपक रहा है लहू दिल के जाम से
सुबह-ए-बहार हमको बुलाती रही मगर
हम खेलते रहे किसी ज़ुल्फ़ों की शाम से
हर साँस पर है मौत का पेहरा लगा हुआ
आहिस्ता ऐ हयात गुज़र इस मक़ाम से
काटी तमाम उम्र फ़रेब-ए-बहार में
काँटे समेटते रहे फूलों के नाम से
ये और बात है के 'आलि' हम न सुन सके
आवज़ उस ने दी है हमें हर मक़ाम से