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% jazbi04.s isongs output
\stitle{Maut - apanii so_ii hu_ii duniyaa ko jagaa luu.N to chaluu.N}
 
\singers{Moin Ahsan Jazbi #4}



अपनी सोई हुई दुनिया को जगा लूँ तो चलूँ
अपने ग़म्खाने में इक धूम मचा लूँ तो चलूँ
और इक जाम-ए-मय-ए-तल्ख़ चढ़ा लूँ तो चलूँ
अभी चलता हूँ ज़रा ख़ुद को सम्भालूँ तो चलूँ

%[jaam-e-may-e-talK = a goblet of bitter wine]

जाने कब पी थी अभी तक है मय-ए-ग़म का ख़ुमार
धुंधला धुंधला सा नज़र आता है जहान-ए-बेदार
आँधियाँ चलती हैं दुनिया हुई जाती है ग़ुबार
आँख तो मल लूँ ज़रा होश में आ लूँ तो चलूँ

%[may-e-Gam = wine of sorrow; Kumaar = intoxication; dhu.ndhalaa = hazy]
%[jahaan-e-bedaar = world of troubles; Gubaar = dust]

वो मेरा साहिर वो एजाज़ कहाँ है लाना
मेरी खोई हुई आवाज़ कहाँ है लाना
मेरा टूटा हुआ वो साज़ कहाँ है लाना
इक ज़रा गीत भी इस साज़ पे गा लूँ तो चलूँ

%[saahir = magic; ejaaz = miracle; saaz = musical instrument]

मैं थका हारा था इतने में जो आये बादल
किसी मतवाले ने चुपके से बढ़ा दी बोतल
उफ़्फ़ वो रंगीन पुर-असरार ख़यालों के महल
ऐसे दो चार महल और बना लूँ तो चालूँ

%[pur-asaraar = pleasing]

मेरी आँखों में अभी तक है मुहब्बत का ग़ुरूर
मेरे होंठों को अभी तक है सदाक़त का ग़ुरूर
मेरे माथे पे अभी तक है शराफ़त का ग़ुरूर
ऐसे वहमों से भी अब ख़ुद को निकालूँ तो चलूँ

%[Guruur = pride; sadaaqat = truth]