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\stitle{tabiiyat in dino.n begaanaa-e-Gam hotii jaatii hai}
\lyrics{Jigar Moradabadi}
\singers{Jigar Moradabadi}



तबीयत इन दिनों बेगाना-ए-ग़म होती जाती है
मेरे हिस्से की गोया हर ख़ुशी कम होतीइ जाती है

वही है शाहिद-ओ-साक़ी, मगर दिल बुझता जाता है
वही है शम्मा लेकिन रोशनी कम होती जाती है

क़यामत क्य ये अए हुस्न-ए-दो आलम होती जाती है
के महफ़िल तो वही है, दिल्कशी कम होती जाती है

वही मैखान-ओ-सहबा, वही साग़र वही शीशा
मगर आवाज़-ए-नोशानोश मद्धम होती जाती है

वही है ज़िंदगी लेकिन 'ज़िगर' ये हाल है अपना
के जैसे ज़िंदगी से ज़िंदगी कम होती जाती है