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\stitle{kahaa.N vo shoKh, mulaaqaat Khud se bhii na hu_ii}
\singers{Jigar Moradabadi #31}
कहाँ वो शोख़, मुलाक़ात ख़ुद से भी न हुई
बस एक बार हुई और फिर कभी न हुई
ठहर ठहर दिल-ए-बेताब प्यार तो कर लूँ
अब इस के बाद मुलाक़ात फिर हुई न हुई
वो कुछ सही न सही फिर भी ज़ाहिद-ए-नादाँ
बड़े-बड़ों से मोहब्बत में काफ़िरी न हुई
इधर से भी है सिवा कुछ उधर की मजबूरी
कि हम ने आह तो की उन से आह भी न हुई