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\stitle{rahii hai daad talab unakii shoKhiyaa.N hamase}
\lyrics{Jan Nissar Akhtar}
\singers{Jan Nissar Akhtar}
रही है दाद तलब उनकी शोख़ियाँ हमसे
अदा शनास तो बहुत हैं मगर कहाँ हमसे
सुना दिये थे कभी कुछ गलत-सलत क़िस्से
वो आज तक हैं उसी तरह बदगुमाँ हमसे
ये कुंज क्यूँ ना ज़िआरत गहे मुहब्बत हो
मिले थे वो इंहीं पेड़ों के दर्मियाँ हमसे
हमीं को फ़ुर्सत-ए-नज़्ज़ारगी नहीं वरना
इशारे आज भी करती हैं खिड़कियाँ हमसे
हर एक रात नशे में तेरे बदन का ख़याल
ना जाने टूट गैइ कै सुराहियाँ हमसे