% jna04.s isongs output
\stitle{mauj-e-gul, mauj-e-sabaa, mauj-e-sahar lagatii hai}
\lyrics{Jan Nissar Akhtar}
\singers{Jan Nissar Akhtar}
मौज-ए-गुल, मौज-ए-सबा, मौज-ए-सहर लगती है
सर से पा तक वो समाँ है कि नज़र लगती है
हमने हर गाम सज्दों ए जलाए हैं चिराग़
अब तेरी राहगुज़र राहगुज़र लगती है
लम्हे लम्हे बसी है तेरी यादों की महक
आज की रात तो ख़ुश्बू का सफ़र लगती है
जल गया अपना नशेमन तो कोई बात नहीं
देखना ये है कि अब आग किधर लगती है
सारी दुनिया में ग़रीबों का लहू बहता है
हर ज़मीं मुझको मेरे ख़ून से तर लगती है
वाक़्या शहर में कल तो कोई ऐसा न हुआ
ये तो "आख्तर" के दफ़्तर की ख़बर लगती है