ACZoom Home E-mail ITRANS ITRANS Song Book

% jna08.s isongs output
\stitle{fursat-e-kaar faqat chaar gha.Dii hai yaaro}
\singers{Jan Nissar Akhtar #8}
% Contributed by Fayaz Razvi



फ़ुर्सत-ए-कार फ़क़त चार घड़ी है यारो
ये न सोचो के अभी उम्र पड़ी है यारो

अपने तारीक मकानों से तो बाहर झाँको
ज़िंदगी शम्मा लिये दर पे खड़ी है यारो

उनके बिन जी के दिखा देंगे चलो यूँ ही सही
बात इतनी सी है के ज़िद आन पड़ी है यारो

फ़ासला चंद क़दम का है मना लें चल कर
सुबह आई है मगर दूर खड़ी है यारो

किस की दहलीज़ पे ले जाके सजाऊँ इस को
बीच रस्ते में कोई लाश पड़ी है यारो

जब भी चाहेंगे ज़माने को बदल डालेंगे
सिर्फ़ कहने के लिये बात बड़ी है यारो