% josh08.s isongs output
\stitle{kyaa hi.nd kaa zi.ndaa.N kaa.Np rahaa guu.Nj rahii hai.n takbiire.n}
\singers{Josh Malihabadi #8}
क्या हिंद का ज़िंदाँ काँप रहा गूँज रही हैं तक्बीरें
उक्ताये हैं शायद कुछ क़ैदी और तोड़ रहे हैं ज़ंजीरें
%[zi.ndaa.N = prison; takbiire.n = slogans]
दीवारों के नीचे आ आ कर यूँ जमा हुये हैं ज़िंदानी
सीनों में तलातुम बिजली का आँखों में झलकती शमशीरें
%[zi.ndaanii = prisoners; talaatum = storm; shamashiire.n = swords]
भूखों की नज़र में बिजली है तोपों के दहाने ठंडे हैं
तक़दीर के लब पे जुम्बिश है दम तोड़ रही है तदबीरें
%[jumbish = small/slight movement; tadabiire.n = solutions]
आँखों में गदा की सुर्ख़ी है बे-नूर है चेहरा सुल्ताँ का
तख़्रीब ने परचम खोला है सजदे में पड़ी हैं तामीरें
%[gadaa = poverty; be-nuur = light-less; taKriib = destruction]
%[paracham = flag; taamiire.n = constructions]
क्या उन को ख़बर थी सीनों से जो ख़ून चुराया करते थे
इक रोज़ इसी बे-रंगी से झलकेंगी हज़ारों तस्वीरें
क्या उन को ख़बर थी होंठों पर जो कुफ़्ल लगाया करते थे
इक रोज़ इसी ख़ामोशी से टपकेंगी दहकती तक़रीरें
%[kufl = lock; taqariire.n = speeches]
सम्भलो कि वो ज़िंदाँ गूँज उठा झपटो कि वो क़ैदी छूट गये
उठो कि वो बैठी दीवारें दौड़ो कि वो टूटी ज़ंजीरें