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\stitle{chhaa rahii kaalii ghaTaa jiyaa moraa laharaaye hai}
\singers{Jurrat #1}



छा रही काली घटा जिया मोरा लहराये है
सुन री कोयल बाँवरी तू क्यूँ मलहार गाये है

ऐ पपीहा आ इधर मैं भी सरापा दर्द हूँ
आम पर क्यूँ जम रहा है मैं भी तो ऐसी ज़र्द हूँ
फ़र्क़ इतना है कि उस में रस है मुझ में हाय है

सारे आज़ारों से बढ़के इश्क़ का आज़ार है
आफ़तों में जान-ओ-दिल का डालना बेकार है
बेवफ़ा से दिल लगाकर क्या कोई फल पाये है

ऐ पपीहा चुप ख़ुदा के वास्ते तू हो ज़रा
रात आधी हो चुकी है अब तुझे क्या होगया
तेरी पी-पी से पपीहा पी मुझे याद आये है

मुद्दतों ढूँढा पिया को मैं ने कर जोगन का भेस
न तो मैं ने उन को पाया और न पाया उन का देस
लोग कहते हैं कि ढूँढे से ख़ुदा मिल जाये है