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\stitle{jiye.nge magar muskuraa naa sake.nge}
\singers{Kaif Irfani #1}
जियेंगे मगर मुस्कुरा ना सकेंगे
के अब ज़िंदगी में मुहब्बत नहीं है
लबों पे तराने अब आ ना सकेंगे
के अब ज़िंदगी में मुहब्बत नहीं है
बहारें चमन में जब आया करेंगी
नज़रों की महफ़िल सजाया करेंगी
नज़ारे भी हम को हँसा न सकेंगी
के अब ज़िंदगी में मुहब्बत नहीं है
जवानी बुलायेगी सावान की रातें
ज़माना करेगा मुहब्बत की बातें
मगर हम ये सावान मना न सकेंगे
के अब ज़िंदगी में मुहब्बत नहीं है